तलाश

हम रोज़ तलाश करते है,
वो हंसी मज़ाक में लिपटी रातें…
वो खिलखिलाहटों की लड़ी,
वो ख़ुशी से निकलता प्यार…
जब हँसते हुए आँखे नम थी पड़ी हमारी,
जब ख़ुशी से साँसे फूली हुई थी तुम्हारी…
वो नुक्कड़ के पत्थर पर देर रात तक गप्पे मारना,
वो दुसरो की नक़ल उतारना वो फालतू की बातें बनाना…आज भी जब उस नुक्कड़ से निकलते है,
वो पत्थर तुम्हे आवाज़ लगाते है…वो रातें उदास सी आज भी तुम्हारी राह तकती है…वो छूटे हुए मोड़ आज भी तुम्हारी हंसी को तरसते है…हम ढूंढ़ते है आज भी ज़िन्दगी के लम्हों में उस सुकून की गूंज…हम तलाशते है आज भी तेरी आँखों की चमक,
हर रात आसमानो में