ख्वाहिश

ख्वाहिशें दिल कि पुछो, तो कुछ युं पता सा चले…

कि दिल में अभी भी वो आग है जो धीरे-धीरे से जले…..

 

तमन्नाओं कि लकीरें आज भी जेहन में उभरी सी है…

और मिटाने कि उन्हे दिल कि हसरत आज भी अधुरी सी है….

 

साल गुजर गये, बरस बीत गये…

और हमे आज भी अपने आप को समझाने कि जिद जरुरी सी लगे…

 

धब्बे आज भी मिटे नही है उन अरमानो के….

जिन्हे कुचल कर हमने सोचा था कि निकल गये हम दर्द के तरानो से…..

 

कभी लगता है कि चले वापस फिर उन हसरतो कि पनाहो में…

पर रोक लेती है कमबख्त वो बेड़ियाँ, जो ख़ुशी से डाली थी हमने अपनी बाहों में……

 

समझना चाहा तो बहुत पर फिर भी समझ नही आता…

मारा हमनें उन ख्वाहिशों को, या उन ख्वाहिशों ने हमे मार डाला